दृष्टि और विमर्श : समकालीन भारतीय कला में समीक्षकों की भूमिका - WITH ISBN -Hardback

2025-10-24

आमंत्रित उप-विषय

  1. विभिन्न कला समीक्षकों, कलाकारों और गैलरी मालिकों के साथ संवाद, और प्रमुख प्रदर्शनियों के अवलोकन का संक्षिप्त विवरण।
  2. यदि कोई व्यक्तिगत अनुभव या अंतर्दृष्टि है जिसने इस विषय पर लिखने के लिए प्रेरित किया।
  3. समीक्षकों या प्रदर्शनी के उदाहरण ऐतिहासिक महत्व, समकालीन प्रासंगिकता, प्रभावशीलता)।
  4. कला समीक्षा की आवश्यकता और भूमिका: कला समीक्षक कौन होते हैं और वे कला जगत में क्यों महत्वपूर्ण हैं।
  5. ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: भारतीय परंपरा में कला मूल्यांकन
  6. प्राचीन और मध्यकालीन भारत में कला के प्रति दृष्टिकोण, सौंदर्यशास्त्रीय मान्यताएँ (जैसे रस सिद्धांत)।
  7. शास्त्रीय ग्रंथों जैसे नाट्यशास्त्र, विष्णुधर्मोत्तर पुराण में कला सिद्धांतों का उल्लेख।
  8. भास, बाणभट्ट जैसे शास्त्रीय आलोचकों की भूमिका और उनके कला संबंधी विचार।
  9. आधुनिक कला आलोचना की नींव: पाश्चात्य कला आंदोलन के प्रभाव के साथ-साथ भारतीय राष्ट्रवाद और पुनर्जागरण कला आंदोलन (जैसे रवींद्रनाथ टैगोर, अमृता शेरगिल, नंदलाल बोस) की भूमिका।
  10. कला आलोचना बनाम कला समीक्षा:  दोनों अवधारणाओं के बीच अंतर, उनके उद्देश्य और लक्षित दर्शक पर प्रकाश।
  11. समकालीन भारतीय कला का संदर्भ: भारतीय कला परिदृश्य की वर्तमान स्थिति, उसकी विविधता और वैश्विक कला बाजार में उसकी बढ़ती उपस्थिति।
  12. कला समीक्षकों की बदलती भूमिका, महत्व और चुनौतियों को गहराई से समझना तथा भारतीय कला समीक्षा के भविष्य की दिशा पर विचार करना।
  13. कला समीक्षक की मुख्य भूमिकाएँ
  14. कलाकृतियों का मूल्यांकन एवं व्याख्या:  उदाहरण: गीता कपूर की शिवालिक प्रदर्शनी या अन्य महत्वपूर्ण कला प्रदर्शनियों पर समीक्षाएँ; रामचंद्रन के भारत की आधुनिक पेंटिंग्स पर विचार।
  15. कला को समाज से जोड़ना:  केस स्टडी: किसी समकालीन प्रदर्शनी पर समीक्षकों की प्रतिक्रियाएँ, जो कला को सामाजिक विमर्श से जोड़ती हैं।
  16. कलाकारों को दिशा एवं प्रेरणा:  अनुभवजन्य केस स्टडी: कैसे समीक्षा ने किसी कलाकार के करियर को प्रभावित किया या उन्हें नए प्रयोगों के लिए प्रेरित किया।
  17. कला बाजार और प्रतिष्ठा को प्रभावित करना:  गैलरी मालिकों, नीलामी घरों और संग्राहकों के दृष्टिकोण ।
  18. कला इतिहास का निर्माण और दस्तावेजीकरण।
  19. बौद्धिकता और तर्क को बढ़ावा।
  20. कला संस्कृति को सम्मान दिलाना।
  21. बदलता स्वरूप और चुनौतियाँ
  22. डिजिटल युग का प्रभाव:  सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ और ट्रोलिंग की समस्या, समीक्षा की विश्वसनीयता पर इसका प्रभाव।
  23. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और एल्गोरिदम आधारित "सुझाव" संस्कृति:   क्या AI आधारित कला समीक्षा कभी मानवीय संवेदना और गहराई पकड़ पाएगी?
  24. नई समीक्षात्मक भाषाएँ और माध्यम: यूट्यूब रिव्यूज़, इंस्टाग्राम आलोचना, पॉडकास्ट।
  25. भारतीय भाषाओं में समीक्षा की कमी:  संभावित समाधान: क्षेत्रीय कला पत्रिकाएँ, भाषा-विशेष ब्लॉगिंग आदि पर चर्चा।
  26. समीक्षकों के सामने नैतिक और व्यावहारिक चुनौतियाँ।
  27. कला समीक्षक की निरंतर प्रासंगिकता।
  28. भविष्य की दिशा: भारतीय कला समीक्षा के भविष्य के लिए सुझाव और संभावनाएं।
  29. सिफारिशें:
    शिक्षा प्रणाली में कला आलोचना को बढ़ावा (स्वतंत्र पाठ्यक्रम, अनुसंधान क्षेत्र)।
    सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों द्वारा कला समीक्षा को प्रोत्साहित करने वाले ग्रांट और पुरस्कार योजनाओं का सुझाव।
    मीडिया में कला समीक्षा की गुणवत्ता और नियमितता बढ़ाने के प्रयास।
    अंतिम विचार: "समीक्षक, कलाकार और दर्शक के त्रिकोणीय संवाद" की अहमियत को बहुत सुंदर ढंग से उकेरना, जो एक जीवंत कला संस्कृति की नींव है।
    प्रमुख केस स्टडी या विशेष आलेख:  प्रमुख समीक्षाओं या आलोचनाओं का विस्तृत विश्लेषण। आलोचक की शैली, भाषा और विश्लेषण की गहराई पर ध्यान केंद्रित।
  30. शब्दावली (Glossary): कला आलोचना और सौंदर्यशास्त्र से संबंधित तकनीकी शब्दों की सूची।
    संपर्क सूत्र और संदर्भ सामग्री: जिन कलाकारों, समीक्षकों, संस्थानों और ऑनलाइन संसाधनों का उल्लेख हुआ है, उनका विवरण।
    पुस्तकों, जर्नल लेखों, वेबसाइटों और अन्य स्रोतों की विस्तृत सूची।

संपादक – कुशाग्र जैन

Whatsapp – 7597516346

Email – kalaasamiksha@gmail.com आलेख के शीर्षक में उक्त पुस्तक “दृष्टि और विमर्श” के लिए लिख कर साथ में अपना परिचय, संपर्क सूत्र, ई मेल, फ़ोटो आदि भी प्रेषित करे।  पेंटिंग्स भी आमंत्रित है चयनित पेंटिंग्स को पुस्तक में स्थान दिया जाएगा.

ई-पुस्तक के प्रकाशन के पश्चात लेखकों को E-Certificate प्रदान किया जाएगा। हार्ड बैक पुस्तक प्रकाशन पश्चात लेखकों को न्यूनतम मूल्य पर उपलब्ध होगी.

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